मेरे बचपन की बारिश
बचपन मे जब बारिश आती थी
और बादल भी गरजता था,
होकर नंग धडंग नहाता,
ऊछल कूद खूब करता था
माँ बाबू जी कितना बोले
अलमस्ती मे रहता था।
भईया की किताबों से
पन्ने खुब चुराता था
कागज की नाव बनाता था
और पानी मे बहाता था
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
भीग भाग कर जब घर पँहुचू
माँ तो डाँट सुनाती थीं
भीगा बदन हमारा होता
उसको वो सुखाती थी
छीक- छीक कर हाल बुरा जब
माँ ही विक्स लगाती थी
कल से नही शैतानी होगी
माँ से ऐसा कहता था
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
बचपन मे जब बारिश आती थी
और बादल भी गरजता था,
होकर नंग धडंग नहाता,
ऊछल कूद खूब करता था
माँ बाबू जी कितना बोले
अलमस्ती मे रहता था।
भईया की किताबों से
पन्ने खुब चुराता था
कागज की नाव बनाता था
और पानी मे बहाता था
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
भीग भाग कर जब घर पँहुचू
माँ तो डाँट सुनाती थीं
भीगा बदन हमारा होता
उसको वो सुखाती थी
छीक- छीक कर हाल बुरा जब
माँ ही विक्स लगाती थी
कल से नही शैतानी होगी
माँ से ऐसा कहता था
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
एक नही हर बारिश मे
बस ऐसा ही करता था।
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